Details and Facts about Cricket Ball : जानिए क्रिकेट गेंद से जुड़े अनोखे फैक्ट्स और रहस्य

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Details and Facts about Cricket Ball  : जब भी क्रिकेट की बात आती है हमें सबसे पहले बैट और बॉल दिखाई देती है। खास बात है कि मैच के दौरान खेलने के लिए पूरी किट तो खिलाड़ी अपनी लेकर आते है, जैसे बैट, पैड, ग्लोव्स और बॉडी आर्मर पर गेंद हमेशा अंपायर लेकर आते हैं और गेंद उपलब्ध कराने का काम भी टूर्नामेंट कराने वाली संस्था की जिम्मेदारी होती है। क्रिकेट के कई फॉर्मेट है और सब में अलग – अलग गेंदों का इस्तेमाल होता है। ICC अलग कंपनी की गेंद इस्तेमाल करता है तो BCCI अलग, छोटी सी गेंद के आखिर कितने रंग है। आज हम आपको क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली गेंद से जुड़ी कई दिलचस्प और रोचक चीजें के बारे में बताएंगे जो आपको हैरान कर देंगी।

सफेद और लाल क्रिकेट बॉल में क्या है अंतर – Defference between white and red ball

क्रिकेट प्रेमी ये तो जरूर जानते होंगे कि टेस्ट क्रिकेट में लाल गेंद का इस्तेमाल होता है वहीं वनडे और टी 20 मुकाबलों में सफेद गेंद का इस्तेमाल होता है। (Details and Facts about Cricket Ball )

1. टेस्ट मैच में लाल गेंद – टेस्ट मैच में लाल गेंद इसलिए प्रयोग की जाती है क्योंकि टेस्ट मैच सफेद जर्सी पहनकर खेला जाता है और ऐसे में लाल गेंद पर नजर बनाए रखना आसान है। टेस्ट मैच में गेंदबाजों को लंबी गेंदबाजी करनी होती है और लाल गेंद सफेद की तुलना में न तो जल्दी गंदी होती है और न ही खराब होती है। इसकी पॉलिश सफेद की तुलना में ज्यादा चलती है। लाल गेंद में तेज गेंदबाजों को अच्छा स्विंग मिलता है और जब ये थोड़ी पुरानी होती है तो रिवर्स स्विंग भी शानदार होता है। जैसा की नाम से समझा जा सकता है ये टेस्ट मैच होते है यहां पर ताबड़तोड़ रन बनाने से ज्यादा पिच पर टिका रहना होता है और गेंदबाजों को बल्लेबाज का टेस्ट लेने का पूरा मौका मिलता है। Red Cricket Ball की सिलाई थोड़ी उभरी हुई होती है और इससे बल्लेबाजी के दौरान हिट करना भी थोड़ा मुश्किल होता है। एक और बात टेस्ट क्रिकेट में 80 ओवर के बाद ही गेंद बदली जा सकती है इस वजह से भी लाल गेंदों का इस्तेमाल किया जाता है। 

2. वनडे और टी 20 क्रिकेट में सफेद गेंद – सफेद गेंद की सीम थोड़ी दबी हुई होती है और ये बल्लेबाजी के लिए लाल गेंद की तुलना में आसान मानी जाती है। साथ ही सीमित ओवर क्रिकेट रंगीन जर्सी में खेला जाता है तो सफेद गेंद पर नजर बनाए रखना आसान है। White Cricket Ball से बॉलर्स की शुरुआती ओवर्स में तो मदद मिल जाती है पर जैसे जैसे गेंद पुरानी होती है बल्लेबाजी के लिए थोड़ा आसान हो जाती है। सफ़ेद गेंद औसतन 35 से 40 ओवर तक खराब होने लगती है और इस वजह से इसे टेस्ट क्रिकेट में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। 

3.डे एंड नाइट टेस्ट में पिंक गेंद – जब बात डे एंड नाइट टेस्ट मैच की आती है तो ये जानना जरूरी है कि रात के समय पुरानी गेंद को सफेद और पीली फ्लड लाइट में देख पाना मुश्किल हो जाता है। पिंक गेंद ज्यादा चमकदार होती है और रात के वक्त इससे खेलना ज्यादा बेहतर है। साथ ही इस गेंद से गेंदबाजों को स्विंग में ज्यादा मदद भी मिलती है। जहां लाल गेंद को सफेद धागों से सिला जाता है वहीं Pink Cricket Ball की सिलाई में काले धागों का इस्तेमाल होता, जिससे इसकी चमक कम होने पर भी फर्क नहीं पड़ता। (Details and Facts about Cricket Ball )

दुनिया में मुख्य रूप से तीन कंपनियां क्रिकेट गेंदों की निर्माता है

1.कुकाबुरा – Kookaburra साल 1890 से क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली गेंदों का निर्माण कर रही है। इस कंपनी की गेंदों को दुनिया में सबसे बेहतर माना जाता है। ये कंपनी ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में स्थित है और आईसीसी भी अपने मैचों में अधिकतर कुकाबुरा की गेंदों का ही इस्तेमाल करता है। 

2.ड्यूक – क्रिकेट गेंद के निर्माण में ये कंपनी सबसे पुरानी है। Duke की स्थापना साल 1760 में हुई थी। ये एक ब्रिटिश कंपनी है और मुख्य रूप से इनकी गेंदों का इस्तेमाल टेस्ट क्रिकेट के लिए किया जाता है। ड्यूक की क्रिकेट गेंद गहरे लाल रंग की होती है।

3. एसजी – ये गेंद निर्माता भारतीय कंपनी है और इसकी स्थापना साल 1931 में सियालकोट पाकिस्तान में हुई थी पर बंटवारे के समय ये SG कंपनी भारत आ गई और उत्तरप्रदेश के मेरठ से अपना कारोबार शुरू किया। भारतीय कंडीशन में खेलने के लिए ये गेंद सबसे बेहतर मानी जाती है और यही कारण है कि साल 1991 में BCCI ने अपने टेस्ट मैचों के लिए SG की गेंदों को मंजूरी दे दी है। 

बता दें ड्यूक और एसजी की गेंदों को कारीगरों द्वारा हाथ से बनाया जाता है वहीं कूकाबुरा की गेंदों का निर्माण आधुनिक मशीनों द्वारा किया जाता है। ICC के नियमों के मुताबिक पुरुष क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली गेंदों का वजन 155.9 से 163 ग्राम तक होना चाहिए और इनकी परिधि 22.4 से 22.9 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। महिला क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली गेंदों का साइज कुछ छोटा होता है और वजन भी कम होता है।

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